हमें रोबोट में तब्दील कर रहा है मोबाइल
छतरपुर। भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के नवें राज्य सम्मेलन के दूसरे दिन स्थानीय आम्बेडकर भवन में जनसंवाद की शैलियाँ विषय पर चर्चा हुई। इससे पूर्व इप्टा, अशोकनगर ने नाटक सोहो में माक्र्स का प्रदर्शन किया। इस एकल नाटक का निर्देशन कबीर राजोरिया ने किया है और माक्र्स की भूमिका अनुपम तिवारी ने की। इसके पश्चात इन्दोर और छतरपुर इकाइयों ने जनगीतों की प्रस्तुति दी।
विषय प्रवर्तन करते हुए मीडिया से जुड़े संस्कृतिकर्मी सचिन श्रीवास्तव ने कहा कि वर्तमान समय में हमारे बीच होने वाले संवादों में आत्मीयता व जीवन्तता की कमी महसूस हो रही है। यह पूर्णत: तकनीकी हो चुकी है और तकनीक हमें रोबोट बनाने का काम कर रही है। लोग अर्ध रोबोट के रूप में परिवर्तित हो चुके हैं और यह एक तरह का मानसिक रोग है। वर्तमान में देश में कोई 47 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं पर इप्टा जैसे संगठनों को उन 80 करोड़ लोगों से संवाद करना चाहिए जो इस तकनीक से वंचित हैं।
इंदौर से आए हुए विनीत तिवारी ने कहा कि बेहतर सम्वाद की पहली शर्त अच्छा श्रोता होना है। अगर आप में सुनने का धैर्य नहीं है तो आप सम्वाद में भी विफल रहेंगे। शहडोल के विजेंद्र सोनी ने कहा कि इप्टा के संवाद की शैली नाटक ही हैं और हमें बस इतना ध्यान रखना है कि ये नाटक जनता के सरोकारों से जुड़े रहे हैं। चर्चा में ईश्वर सिंह दोस्त और अब्दुल्ला ने भी हिस्सा लिया।
इससे पूर्व प्रथम दिवस में दिनांक 21 फरवरी को कार्यक्रम का उद्घाटन हुए संगठन के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने किया। उन्होंने कहा कि महान अभिनेता चार्ली चैपलिन कला को जनता के नाम प्रेम-पत्र के रूप में परिभाषित करते थे। इप्टा इसमें यह जोड़ती है कि कला सत्ता के नाम एक अभियोग-पत्र भी है। कवि कुमार अम्बुज ने फासीवाद के खतरों और उसके रूपों पर बेहद गम्भीर चर्चा की।
उद्घाटन सत्र के पश्चात छतरपुर इकाई ने एक ढिमरयाई लोक-नृत्य की प्रस्तुति दी। टीकमगढ़ की पाहुना लोक जन समिति ने कुछ चर्चित कविताओं पर आधारित कविता-कोलाज की प्रस्तुति दी। ग्वालियर की समर्पण नाट्य संस्था ने मानव कौल के नाटक पार्क का प्रदर्शन किया। यह नाटक थोड़े परिमार्जित हास्य-बोध के साथ बहुत गम्भीर बात कहता है। सम्मेलन के अंतिम दिन दिनांक 24 फरवरी को संध्या 7 बजे समागम रंग मण्डल जबलपुर द्वारा देश भर में चर्चित नाटक अगरबत्ती का प्रदर्शन किया जाएगा।
इप्टा राज्य सम्मेलन का दूसरा दिन